दवा कंपनियों को बड़ा झटका, 343 एफडीसी दवाओं पर प्रतिबंध की सिफारिश
सुमन कुमार
नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दवा उद्योग पर सरकार का डंडा लगातार चल रहा है। कई दवाइयां जहां मूल्य नियंत्रण के दायरे में आ गई हैं वहीं सरकार ने दो साल पहले 349 फिक्स डोज कॉम्बीनेशन दवाओं को असुरक्षित और बेकार करार देकर प्रतिबंधित कर दिया था। सरकार के इस फैसले का असर देश के 6 हजार मेडिकल ब्रांडों पर पड़ा था और इन दवाओं को बनाने वाली सैकड़ों दवा कंपनियों ने सरकार के इस फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने डीटीएबी पर छोड़ा था फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दवा कंपनियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकारी प्रतिबंध को हटा दिया था। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन दवाओं के भविष्य का फैसला ड्रग्स टेक्नीकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) पर छोड़ दिया था।
डीटीएबी ने इस बारे में विचार करने के लिए नीलिमा क्षीरसागर की अगुआई में एक सब कमेटी बनाई थी और अब इस सब कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी है। सब कमेटी ने इन 349 दवाओं में से 343 पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की है जबकि 6 अन्य दवाओं को या तो सीमित करने या फिर उन्हें नियामक के हवाले करने की बात कही है।
सरकार को सौंपी जाएगी रिपोर्ट
बताया जा रहा है कि ये रिपोर्ट अगले दो सप्ताह में स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी जाएगी और उसके बाद सरकार इस बारे में फैसला लेगी। चूंकि सरकार पहले ही इन दवाओं को प्रतिबंधित करने के पक्ष में है इसलिए माना जा रहा है कि सरकार इन सिफारिशों को मंजूरी दे देगी। चूंकि खुद सुप्रीम कोर्ट ने डीटीएबी को फैसला लेने को कहा था इसलिए शायद दवा कंपनियों को अब सुप्रीम कोर्ट से भी राहत न मिले। यानी ये दवा कंपनियों के लिए एक करारा झटका साबित हो सकता है।
सब कमेटी की जांच
इस सब कमेटी ने पाया है कि इन दवाओं पर प्रतिबंध के खिलाफ अपील करने वाली अधिकांश दवा कंपनियों ने इन दवाओं से संबंधित सुरक्षा और प्रभावकारिता संबंधी आंकड़े खुद से जमा नहीं किए हैं। इन कंपनियों में से 95 फीसदी इन दवाओं के सुरक्षित, तर्कसंगत और अनुकूल होने संबंधी दावों को साबित नहीं कर सकीं।
यही नहीं सब कमेटी ने यह भी पाया कि इन दवाओं से संबंधित जो भी प्रकाशित सामग्री इन दवा कंपनियों ने मुहैया कराई वह प्रासंगिक नहीं हैं और कुछ पक्षपाती अध्ययनों पर आधारित हैं।
क्या हैं एफडीसी
इन एफडीसी का इस्तेमाल इसलिए इतना अधिक होता रहा है क्योंकि ऐसी दवाएं जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची से बाहर होती हैं और इनका इस्तेमाल मुख्यत: छोटे सेंटरों के झोलाछाप डॉक्टर करते हैं। चूंकि ये दवाएं कई अलग-अलग दवाओं के मिश्रण से तैयार होती हैं इसलिए किसी तरह के संक्रमण की स्थिति में ये झोलाछाप डॉक्टर मरीजों को एक ही दवा लिख देते हैं। मगर यहीं इनके सुरक्षित होने का मामला सामने आता है क्योंकि एकाधिक दवा का मिश्रण होने से मरीजों पर इनका प्रभाव खतरनाक भी हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इनपर प्रतिबंध लगाया था मगर कंपनियों ने हाईकोर्ट के जरिये ये बैन हटवा दिया था। उम्मीद है कि अब इन दवाओं को फिर से प्रतिबंधित दवाओं की सूची में डाला जा सकेगा।
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